Tuesday, July 6, 2010

बारिश की वो पहली बूँद :)


कभी टपक टपक , कभी झनक झनक ,
इक बूँद चली धरती की तरफ ...
अम्बर से गिरी...
कभी इधर पड़ी , कभी उधर लड़ी
पत्तो के छोर , मेघा घनघोर...

सूरज के तप में , वो तपके तप...
बनी नीर से नील , फिर नील से नीर ...
फिर उसी धरा से मिलने चली,
वो हुई दूर थी जिससे कभी

नटखट वो बूँद ...
करती बड़ी अटखेलिया
खेले वो आँख मिचोलिया
कभी टपक टपक , कभी झनक झनक

दौड़ी उमंग ... हर अंग अंग
जब हुआ मिलन, धरा संग संग
सब फूल खिले , छाई हरियाली...
महक उठी ये मिटटी सारी...

नाचे मयंक ... खोले अपने पंख...
बस रंग रंग.... बस रंग रंग ........

इक बूँद हे वो , जीवन की तरह ॥
हे वो तोह बहता पानी...
मिलके बिछड़ना , फिर बिछड़ के मिलना ...
बस यही हे उसकी कहानी ॥

3 comments:

Megha said...

tapak tapak, jhanak jhanak!
Beautiful poem Rachna
Kip it up :)

Monster said...

Nice poem...loved the 2nd para...eagerly waiting for more :)

- Shailesh

Maya said...

Love this absolutely!!