Saturday, July 17, 2010

एक फूल की कहानी :)


सुनो सुनो ,
सुनो सुनो,
उस फूल की कहानी,
नाम था जिसका गुलाब,
और ये हे उसकी दास्तान--जिंदगानी

छुटपन से ही बेचारे ने,
कितने अश्रु मनोमन पिए,
ओस बनकर कभी कभी,
जो उसके मुख पर सज लिए

कितने ही तूफ़ान देखे ,
कितने अंधेरो का साया,
तलाशता रहा इस बीच,
उस आँचल को वो...
...
जो कभी उसे मिल पाया

अपनों ने दुःख पहोंचाया उसको,
कुछ ऐसी हुई वो बातें,
उन्ही काँटों ने चुभोया उसको ,
जो थी कभी उसकी बाहें,

छलनी किया उसका मान,
स्वाभिमान,
टूट गया वो, बिखर गया वो,
पर अब भी दिल में था उसके,
एक अरमान

इक आस जागी मन में उसके,
जब देखा उसने उस कलि को,
जो खिल रही थी डाल पे उसकी,

चंचल , और नादान,
इस संसार की अटखेलियों से,
थी वो बेचारी अनजान

उस फूल की छाया में वो कलि,
थी उसी फूल की छाया।

तब लिया ये प्रण,
उस फूल ने मन ही मन, कि...
"...
जिस राह पर में चली ...
उस राह पर तू ना चलना कभी,
मेरी प्यारी कलि

उस फूल कि फिदरत ऐसी,
जो औरों के लिए जीता जाए,
टूट जाए, बिखर जाए, पर...
मुरझाकर भी ना मुरझाये,

बस निस्वार्थ, इस जग को ,
महकाता जाए ,
महकाता जाए,
महकाता जाए ।।

2 comments:

Shivika Mathur said...

beautifully put Rachna :)

Rachna Handa said...

thanks shivika :) glad you liked it.